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सूक्ति-सुधा
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टीका - मुनि अथवा निस्पृह त्यागी स्वाद के लिये और शरीर को बलिष्ठ बनाने की भावना से भोजन नही करे, वल्कि सयमरूपी यात्रा के लिये और पांच महाव्रत की रक्षा के लिये अनासक्त होकर भोजन करे ।
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( ४९ ) दुक्खेण पुट्ठे धुय माइएज्जा ।
सू०, ७, २९
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टीका -- दुःख का स्पर्श होने पर, कठिनाइयो के आने पर, परिपहों और उपसर्गों के उपस्थित होने पर, साधु विचलित न हो, परन्तु दृढता के साथ, सयम पर स्थित रहे और मोक्ष का ही ध्यान रखें ।
(५०)
अणगारे पञ्चकखाय पावए ।
सू०, ८, १४
टीका-साघु या त्यागी महात्मा, पाप कर्मों का अशुभ मानसिक, वाचिक और कायिक कर्मों का त्याग करके, भोगों को और कषायों को दूर करके निर्मल आत्मा वाला होवे । कषाय यानी क्रोध, मान, माया और लोभ का परित्याग करने पर ही मुनि धर्मं और त्याग - अवस्था कायम रह सकती है |
( ५१ ) भिक्खवत्ती सुहायहा । ०, ३५, १५
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टीका - मानव-जीवन प्राप्त करके, सभी सासारिक सम्बन्धों को त्याग करके, निश्चितता पूर्वक भिक्षा वृत्ति से जीवन चलाना वास्तव में महान् आनन्द दायक है । अनासक्ति के साथ जीवन व्यवहार को चलाने के लिये भिक्षावृत्ति निस्सदेह सुख को लाने वाली है ।