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सूक्ति-सुधा]
[१३९ • टीका-यदि अव्यावाध यानी नित्य, शाश्वत् और बाधा रहित सुख की आकांक्षा है, अथवा मोक्ष की इच्छा है तो गुरु को प्रसन्न रक्खो, उनकी आज्ञा का पालन करो। गुरु की भावना के विपरीत मत जाओ। ..
. (७२) दुल्लहं लहित्तु लामण्णं, कम्मुणा न विराहिज्जासि ।
द०, ४, २९ टीका-जो मुनी-धर्म महान पुण्य के उदय से प्राप्त हुआ है, और जो ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र मय है, ऐसे उत्कृष्ट मुनि-धर्म को प्राप्त करके मन, वचन और काया के प्रमाद से वुद्धिमान् इसकी विराधना नही करे।
(७३) .. . अभिसंधर पावविवेग भिक्खू । -
- सू०, १४, २४, . . . . . टीका--सयमी पुरुष पाप का , विवेक रखता हुआ, दुर्गुण और दुष्टता से वचता हुआ, निर्दोष वचन बोले । वाणी सुन्दर, सत्य, प्रिय, हितकारी, मधुर और शातिमय वोले।
. . . (७४ ) - . सव्वत्थ विरतिं कुज्जा।
___ सू०, ११, ११, ___टीका-प्रत्येक स्थान पर, प्रत्येक अवस्था मे, प्रत्येक मौके पर, सभी जीवो की रक्षा करनी चाहिये। अनिष्ट कार्यों से विरति रखना चाहिये । अशुभ प्रवृत्तियो से विरक्त रहना चाहिये ।
(७५) निवाण-संधए मुणि।
सू०, ९, ३६