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[उपदेश-सूत्र
टीका-आत्मार्थी पुरुष काम-भोगों को छोड कर केवल निर्वाण ‘की तरफ-पूर्ण अनासक्त जीवन की तरफ ही अपनी शक्ति लगावे, 'अपना ध्यान लगावे ।
( ७६ ) समया लव भूएसु, सनु मित्तसु वा जगे।
उ०, १९, २६ टीका-ससार मे शत्रु पर और मित्र पर, सभी प्राणियो पर समता बुद्धि रखनी चाहिये । राग द्वेष रहित भावना रखनी चाहिये, मित्र-भावना और हितैषी-भावना रखनी चाहिये।
अहिपासए आय तुले पाहिं
___ सू०, २, १२, उ, ३ टीका-विवेकी पुरुष, प्राणी मात्र को अपनी आत्मा के समान ही समझे। किसी को भी कष्ट न दे। प्राणी मात्र की सेवा करे।
(७८) अणुसासण मेव पक्कमे।
सू०, २, ११, उ, १ टीका-शास्त्र में कही हुई रीति के अनुसार ही जीवन-व्यवहार चलाना चाहिये । जीवन मे सेवा, सात्विकता, त्याग और सरलता आदि सद्गुणो की ही प्रधानता होनी चाहिये।
छिन्न सोए अममे अकिंचणे ।
उ०, २१, २१, ___टीका-आत्मार्थी को छिन्न शोक, विगत शोक, ममता-मर्ची रहित, अकिंचन यानी अनासक्त और निष्परिग्रही होना चाहिये ।