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सूक्ति-सुधा ]
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टीका - यह जीवन अनेक विघ्न वाघाओ से भरा हुआ है, इसलिये पहले किये हुए पापो को, और कर्म रूपी रज को दूर कर दो । पूर्वं कृत पापो की शुद्धि कर डालो ।
( ६४ )
बुद्धे परिनिबुडे चरे, सन्ती मगं च वूहए ।
उ०, १०, ३६
टीका -- ज्ञान- शाली होकर, गीतार्थ होकर, वासनाओ से और पूर्वक विचरो । आत्मा के कल्याण
मूर्च्छा से रहित होकर आनन्द मार्ग की वृद्धि करो |
( ६५ )
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जे न वंदे न से कुप्पे, बंदियो न संमुक्कसे । द०, ५, ३२, उ, द्वि
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टीका - कोई वदना नही करे, आदर-सत्कार नही दे, तो भी उस पर क्रोध नही करे, तथा कोई वदना, आदर सत्कार करे, तो मन में अभिमान - घमंड नही लावें । खुद की निंदा-स्तुति से समभाव रहे । क्रोध और अभिमान से दूर रहे |
( ६६ )
कुम्मुव्व अल्लीण पलीय गुत्तो । द०, ८, ४१
टीका--जैसे कछुआ बड़ी सावधानी के साथ अपनी इन्द्रियो की रक्षा करता है, वैसे ही आत्मा के हित को चाहने वाले को अपनी इन्द्रियो पर और मन पर पूरा संयम और नियंत्रण रखना चाहिये ।