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[ उपदेश-सूत्र
चोर उठाकर चले जाते है । तो ऐसे सयोगो में प्रमाद को जीवन में कैसे स्थान देना चाहिये ?
( ६० ) परिव्त्रयन्ते अणियत्तकामे, श्रहो य राओ परितप्यमाणे । उ०, १४, १४,
टीका - जो काम - भोगो को नही छोड़ता है, वह रात और दिन विभिन्न अवस्थाओं में परिताप दुख पाता हुआ परिभ्रमण करता रहता है ।
( ६१ )
अज्जाई कम्माई करेहि । उ०, १३, ३२
टीका - आर्य कर्मों शील, तप, भावना, क्षमा, ही आचरण करो ।
का, सात्विक कामो का यानी दया, दान, सतोप, पर-सेवा आदि अच्छे कामो का
( ६२ )
रस गिद्धे न सिया । उ०, ८, ११
टीका - रसो में गृद्ध न स्वाद मे मूच्छित न वनो । बनो ।
वनो । इन्द्रियों के भोग-उपभोग के पुद्गलो के क्षणिक सुख में मूढ न
( ६३ )
जीवियए बहुपच्चवायए, विगाहि रयं पुरे कडे ।
उ, १०, ३