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सूक्ति-सुवा
[१३६ कथित उपदेश का अति-क्रमण नहीं करे। भगवान् की आज्ञा का बरावर पालन करे।
{ (५७) पर किरिअंच वज्जए नीणी।
— सू०, ४, २१, उ, २ . . . टीका-विशुद्ध चित्त वाला, तथा मर्यादा मे स्थित ज्ञानी पुरुष पर-क्रियाओं को यानी दूरारो के लिये भोग-उपभोग की क्रियाओ को जुटाने का कार्य नही करे, स्वय भी विषयासक्त एव भोगी नही बने तथा दूसरो के लिये भी विषय एव भोग की सामग्री न तो इकटके करे धौर न स्वय इनके लिये कारण भूत बने ।
~1 (५८). .
सणे जह वयं हरे, i . . एव आउखयंनि तुई। . . . . सू०, २, २, उ, १ . ___टीका-जैसे श्येन-पक्षी, बाज-पक्षी वर्तक पक्षी को-तीतर आदि पक्षी को झपट कर, पकड कर, मार डालता है, वैसे ही मृत्यु भी आयुष्यपूर्ण होते ही प्राणी को पकड लेती है और जीवन को समाप्त कर देती है, इसलिये धर्म. क्रियाओ के लिये सावधान हो जाना चाहिये।
(५९) . . इमं च म अस्थि इमं च नथि, हराहरंति त्ति कई पमानो।
टीका--यह मेरा है और यह मेरा नहीं है, इस प्रकार मूर्छाभावना मे पड़े हुए मनुष्य को एक दिन अचानक रूप से मृत्यु रूपी