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। उपदेश-सूत्र ( ५३.). वरण जरा हरइ नरस्स।
उ०, १३, २६ टीका-बुढापा मनुष्य के रूप-सौन्दर्य को हरता रहता है, इसलिये प्रमाद को छोड कर धर्म कार्यो मे और स्व-पर कल्याण कारी कामो मे चित्त को लगाना चाहिये। स्वार्थ के स्थान पर परार्थ ही प्रमुख ध्येय होना चाहिये ।
(५४) अणुसासियो न कुप्पिज्जा ।
उ०, १, ९ ___टीका--सुशिक्षा यानी हितकारी और शिक्षाप्रद वातो का उपदेश दिये जाने पर क्रोध नही करना चाहिये।
( ५५ ). वीरे आगमण सया परक्रमेज्जा ।
बा०, ५, १६९, उ, ६ i, टीका--जो ज्ञान, दर्शन और चारित्र के परिपालन मे वीर है, उसकी वीरता इसी मे रही हुई है कि वह आगम-धर्म के अनुसार जीवन मे सदैव पराक्रम करता रहे। जीवन के नैतिक-धरातल को अजोड वनावे । . सेवा और “सयम. के कोमो . में आसाधारण, पुरुप वने।
___ (५६) - निसं नाइवढेशा मेहावी।
आ०, ५, १६९, उ, ६ टीका-जो बुद्धिमान है, जो तत्त्व दर्शी है, उसका कर्तव्य हैं कि वह भगवान महावीर स्वामी द्वारा एव वीतराग भगवान द्वारा