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उपदेश-सूत्र
तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदयं।
आ०, ५, १६३, उ, ५ टीका-सम्यक् जानी के लिये तो यही हितकर है कि जिनेन्द्र भगवान ने जो कुछ फरमाया है, उसे ही सच्चा श्रद्धे। उसे ही निशांक माने । किसी भी प्रकार की भ्रमणा अपनी मान्यता में और जिन-वचनो में नही लावे ।
(२) समय गोयम ! मा पमायए ।
का-हे गौतम! समय भर का भी, क्षण मात्र का भी प्रसाद मत कर, क्योकि व्यर्थ में खोया हुआ समय पुन: लौट कर अाने वाला नही है।
धीरे मुहुत्त मवि यो पमायए।
मा०, २, ६६, उ०,१ टीका-बुद्धिमान् पुरुष-ज्ञानी पुरुप संसार की अनित्यता का विचार कर और आकस्मिक रूप से आने वाली मृत्यु का विचार अन एक क्षण भर का भी प्रमाद नहीं करे, एक सेकिंड भी व्यर्थ नहीं न्द्रोवे । ईश्वर-श्रद्धा से और कर्तव्य-मार्ग से, तथा सेवा आदि सत्कार्यों से एक क्षण के लिये भी दूर नहीं रहे ।