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________________ सूक्ति-सुधा [१०९: अन्याय आदि पाप रहा हुआ हो, वह आहार त्याज्य है, क्योकि वह सदोष होता है। (२३), पंचविहे आयारे, णाणायारे । दसणायारे, चरित्तायारे, तवायारे, वीरियायारे। - -ठाणा, ५चा ठा, उ, २, १४ ।। टीका-पांच प्रकार का आचार कहा गया है.-१ ज्ञानाचार २.दर्शनाचार, ३ चारित्राचार, ४ तपाचार और ५ वीर्याचार। , १ द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को देख कर अविनय · आदि आठ दोषो को टालना ज्ञानाचार है। २ सम्यक्त्व के दोषों को टालना दर्शनाचार है। ३ पाच प्रकार की समितियाँ और तीन गुप्तियाँ पालना चारित्राचार है। ४ बारह प्रकार के तप का आचरण करना तपाचार है। ५-धर्म-मार्ग मे पराक्रम वतलाना वीयर्यांचार है। (२४) चरहिं ठाणेहिं जीवा देवाउयत्ताए, कम्मं पगरेंति, सरागसजमेणं, संजमासंजमेणं, बालतवो कम्मणं, काम निज्जराए। __ठाणा०, ४था, ठा, उ, ४, ३९ टीका-चार प्रकार के कामो से जीव देव-गति का बंध करते है .-१ सराग सयम से, २ सयमासयम से, ३ बालतप करने से और ४ अकाम निर्जरा से ।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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