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सद्गुण सूत्र
टीका -- जिस आत्मा ने ससार को अनित्य समझ लिया है, तथा जो आत्मा एकान्त रूप से ईश्वर पर श्रद्धा कर के अपने निर्मल चारित्र द्वारा कर्त्तव्य मार्ग पर आरूढ है, ऐसी आत्मा के नवीन कर्म आते हुए रुक जाते है । इसी प्रकार जो इन्द्रियो के भोगो से और मानसिक कषाय - वृत्तियो से निवृत्त है, वे अब पुनर्जन्म नही करेगे । क्यो कि ससार में चक्कर लगाने का कोई कारण अब ऐसी पवित्र आत्माओं “के लिये शेष नही रहता है ।
( २० ) वन्दणणं नीयागोयं कम्मं खवेर, उच्चा गोयं कम्मं निबन्ध |
उ०, २९, १०, वा, ग०
टीका — गुरुजी को तथा पच महाव्रतधारी साधुजी को -वदना करने से, भाव पूर्वक इन्हे आदर्श मानने से, नीच - गोत्र कर्म के वध का नाश होता है और उच्च गोत्र कर्म का बध पड़ता है |
( २१ )
वायणाए निज्जर जणयइ ।
उ०, २९, १९व, ग०
टीका - वाचना से, शास्त्रो के पढ़ने से, साहित्यिक और दार्शनिक ग्रथो का अध्ययन करने से, इनका मनन तथा चिन्तन करने = से, कर्मो की निर्जरा होती है । पूर्व कृत कर्मों का क्षय होता है ।
( २२ ),
भुंजिज्जा, दोषं वज्जियं ।
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द., ५, ९९, उ, प्र,
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टीका-दोप-वर्जित आहार करना चाहिये । यानी जिस - -आहार में हिंसा, झूठ, चोरी, आसक्ति, गरीबो का शोषण, अत्याचार,