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सूक्ति-सुधा ]
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टीका - जो बुद्धिमान् होता है, जो ज्ञान-शील होता है, वही
: धर्म के मर्म को धर्म के रहस्य को जान सकता है । तत्वो के और
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सिद्धान्तो के तह में उच्च ज्ञानी ही प्रवेश कर सकते है - अज्ञानी और भोगी नही ।
( १६ ) सिक्खं सिक्खेज्ज पंडिए ।
सू०, ८, १५
टीका - पडित पुरुष - ज्ञानी पुरुष - सलेखना रूप शिक्षा को ग्रहण करे । आलोचना के साथ पश्चात्ताप और प्रायश्चित द्वारा जीवन की शुद्धि करे । और पुनः वैसी भूल नही करने की प्रतिज्ञा के साथ जीवन-काल व्यतीत करे।
सू०, ३, २०, उ, ४
टीका – सब स्थानों पर, सब काल में विरति करना चाहिये,.
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आदि से विरक्त रहना
( १७ ) सव्वत्थ विरति कुज्जा ।
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यानी पाप, अशुभ योग, कषाय, वासना
चाहिये ।
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(१८ ) ... न कंखे व संथवं 1
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उ', ६, ४.
टीका- आत्मार्थी अपने जीवन के पूर्व भाग मे भोगे हुए भोगों का न तो परिचय करे, न उनकी स्मृति करे और न आकाक्षा ही. करे । उनको सर्वथा ही भूल जाये ।
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( १९ ) समुप्पेहमाणेस्स इक्काययणरयस्स,
इह विप्पमुक्कस नत्थिं मग्गेविरयस्स । - :
आ०, ५, १४९, उ, २
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