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सूक्ति-सुधा ]
[१०१ प्रशंसनीय कहा गया है। बाह्य युद्ध तो निकम्मा और निंदनीय है। यही तत्वदर्शियो का फरमान है।
(१५) धुय मायरेज्ज।
सू०, ५, २५, उ, २ टीका---गुणज्ञ पुरुष स्वीकृत और आराधित नियम-सयम का भली-भांति आचरण करे। ।
. अतत्ताए परिव्वए। . -
सू०, ११, ३२ . टीका-आत्मा के विकास के लिये और आत्मा के स्थायी सुख के लिये, समझदार पुरुष इन्द्रियो को वशमें रखे। ससार के पौद्गलिक सुखो की प्राप्ति के ध्येय से सयम का पालन नहीं किया जाय, बल्कि चारित्र के पालन का एकान्त दृष्टिकोण यही हो 'कि आत्मा अनन्त आनन्द प्राप्त करे। जीवन का यही एक मात्र ध्येय हो।
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। (१७)
सव्वत्थ विणीय मच्छरे।
- सू०, २, १४, उ,३ टीका-सब जगह और. सदैव सभी प्राणियो के प्रति और 'सभी कार्यों के प्रति ईर्षा-भाव का परित्याग करना ही मानवता की सर्व प्रथम सीढ़ी है।
निविदेज्ज सिलोग पूयणं ।
सू०, २, १३, उ, ३