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E.कर्तव्य-सूत्र
. . . टीका-~आत्म कल्याण की इच्छा वाले मुमुक्षु को अपनी प्रशसा, याः कीति, पूजा, सन्मान आदि से दूर रहना चाहिये ।, ये पतन की ओर ले जाने वाले है और, अभिमान पैदा करने वाले है। इन बातो से मुमुक्षु सदैव दूर ही रहे। पूजा-सन्मान की आकाक्षा भी मोह का रूप ही है।
- (१९) सुपरिच्चाई दमं चरे। ... ..:.
उ०, १८, ४३ टीका-सुपरि त्यागी होकर, अनासक्त और निर्ग्रन्थ होकर, दमन-मागं पर, इन्द्रियं-सयम के मार्ग पर और कषाय-जय के मार्ग पर अपनी आत्माको जोडे । आत्मा को सयोजित करे।।
(२०) संस्थारभत्ती अणुवीइ वायं। .
सू०, १४, २६ : टीका-शिक्षा देने वाले गुरु की भक्ति का ध्यान रखता हुआ शिक्षार्थी सोच विचार कर कोई वातं कहे । गरु के कथन के विपरीत नही बोले, एव सस्कृति के प्रतिकूल विवेचना भी नही करे।
(२१) पण समत्त संया जए,
समती धम्म मुदाहरे। ::. , ... सू०, २, ६, उ, २ . . - टीका-पूर्ण बुद्धिमान् पुरुष सदा कषायों को-क्रोध, मान, माया
और लोभ को जीतता रहे। इन पर विजय प्राप्त करता रहे तथा समता-धर्म का-वीतराग-धर्म का उपदेश करता रहे।