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कर्तव्य-सूत्रः ____टीका-जिस श्रद्धा से, जिस उत्कृष्ट त्याग-भावना से और जिस कर्तव्य-प्रेरणा से सासारिक सुख वैभव, का परित्याग करके दीक्षा ग्रहण की है। यावी महापुरुपो के मार्ग का अवलम्बन किया है, उसी भावना के साथ, और उसी आदर्श श्रद्धा के साथ उस दीक्षाकी तथा उस कर्त्तव्य की. परिपालना करे। , . .
अलं वालस्स संगण। ।। । । । । । आ०, २, ९६, उ, ५
. , :, टीका-~मूों की. सगति कभी भी नहीं करनी चाहिये, क्योंकि सगति अनुसार ही फल मिला करता है। सगति अनुसार ही -गुणों का और दुर्गुणो का ह्रास अथवा विकास हुआ करता है।
(१३) ___चरेज्जे अत्तगवेसप।- .
उ,२,१७” . ' ' ' टीका--आत्मा की अनंतता' को और आत्मा की महत्ता की खोज करने वाला 'सयम-मार्ग पर ही-इन्द्रिय-दमन के मार्ग पर ही सलग्न रहे । ' आत्मा की अनुभूति विकार वासना, 'कपाय, तृष्णा और इन्द्रिय भोगो पर विजय प्राप्त करने पर ही हो सकती है। ......
" .. इमण चेव जुझ हिं, 5 ... क जुका
टीका -बाह्य शत्रुओ के साथ लडने मे कोई गौरव नहीं है, जब तक कि आतरिक शत्रुओ को-"काम, क्रोध, मोह, मद, मात्सर्य, लोभ आदि शत्रुओ को नहीं हरा दिया जाय, तब तक वाह्य-युद्ध से क्या लाभ होने वाला है. आंतरिक युद्ध ही ज्ञानियो द्वारा
जयगा झियो
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