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सुक्ति-सुधा ] • - - - - - - - - -(८) . . .
- - -- - - लांजा दया संजम बंमचेरं, . " -~ • कल्लाण भागिस्स विसोहि ठाणं । - - :-८०, ९, १३ प्रं, उ, . . . ..
टीका-कल्याण के लिये अर्थात् अनत आत्मिक सुख की भावना वाले के लिये, (१) लज्जा यानी व्यवहार-कुशलता के साथ मर्यादा पालन, (२) दया यानी सभी . प्राणियो पर आत्मवत् दृष्टि, (३) सयम यानी विषय-कषाय विकार पर नियंत्रण और (४) ब्रह्मचर्य यानी मन, वचन तथा, काया पूर्वक स्त्री-सगति से दूर रहना और वीर्य-रक्षा करना; ये चार आवश्यक और प्रधान आचरणीय क्रियाऐ है ।।... :. . . . . . . . . . . :
सुस्सए आयरि अप्पमत्तो।
द०, ९, १७, प्र, उ, टीका-प्रमाद रहित होकर, सदैव सत् क्रिया शील होकर, अपने आचार्य को अथवा अपने गुरु की निष्कामना के साथ विशुद्ध, हृदय होकर सेवा करता रहे । उनकी भक्ति करता रहे। .
समय तत्यु वेहार प्राप्पावं विप्पसायए।
आ०, ३, ११७, उ, ३.. टीका-ज्ञानी का या मुमुक्षु का यह कर्तव्य है कि वह समता धर्भ में ओर शांति धर्म में अपनी आत्माको स्थिर कर आत्मिक शक्तियो का सात्विक रीति से विकास करता रहे।
(११) जाप सदाए निक्खंतो, तमेव अणु पालिज्जा। आ०, ३, २०, उ, ३