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णो जीवितं णो मरणाहि कंखी । "सूट, १२, २२
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टीका --- ईश्वर पर श्रद्धा रखने वाला पुरुष और धार्मिक नियमों पर चलने वाला पुरुष न तो जीवन पर आसक्ति रखे और न मृत्यु से घबरावे । कठिनाइयाँ आने पर भी मृत्यु की अकाक्षा नही रखे । तथा सुख-सुविधा होने पर भी जीवन के प्रति अनासक्त रहे ।
[] कर्तव्य-सूत्र
( ६ ) अण्डा जे य सव्वत्था परिवज्जेज्ज |
( 4 )
मावतं पुणो विविए । ॐ०, १०, २९
टोका -- त्यागे हुए विषय को, और छोड़ी हुई कषाय- वासनाको पुनः ग्रहण मत करो । भोगो की तरफ मत ललचाओ ।
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उ०, १८, ३०
टीका--जो अनर्थ कारी क्रियाऐं है, जिन क्रियाओ से न तो स्व का और न पर का हित होने वाला है, अथवा जो स्व को या प्पर को हानि पहुंचाने वाली है, जो आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टि से वर्जनीय है, जो त्याज्य है, ऐसी क्रियाओं को सर्वत्र और सर्वदा के लिये छोड़ देना चाहिये ।
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( ७ ) रायणिवसु विणयं पउंजे । ८०, ८, ४१
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टीका--ज्ञान, दर्शन और चारित्र में वृद्ध मुनिराजों की सदैव विनय भक्ति और सेवा करते रहना चाहिये । क्योकि सेवा ही मोक्षदायिनी होती है ।
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