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कर्तव्य-सूत्र
- ( १ -) किरिथं परिवजए
उ०, १८, ३३
टीका - अक्रिया का, नास्तिकता का, अनास्या का परित्याग } करना चाहिये। जीवन से ज्ञानके साथ क्रिया को भी यानी चारित्र को भी स्थान देना चाहिने । क्रिया शून्य ज्ञान मोक्ष तक नही पहुचा सकता है |
( २ )
सव्वं सुचिराणं सफेलं नराणं ।
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उ., १३, १०
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टीका—सात्विक उद्देश्यों से किये जाने वाले सभी कार्य मनुष्यों के लिये अच्छे फल देने वाले होते हैं । भाव॒नानुसार फल की प्राप्ि हुआ ही करती है
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(३)
जाइ सद्धाइ निक्खत्तो, तमेव अणु पालिज्जा ।
17' द६१
टीका — जिस श्रद्धा के साथ, जिस दृढ आत्म-विश्वास के साथ, स्व और पर क्के कल्याण के लिये निकला हो, उसी दृढ भावना के साथ एक अचले श्रद्धा के साथ - स्व, और 1, पर के किल्याण में उगेरहना चाहिये ।
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