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सूक्ति सुधा]
[८७ (३२) न संत संति मरणं ते सील वन्ता बहुस्सुया।
उ०, ५, २९ टीका-शील वाले, सत्चरित्र वाले और ज्ञान वाले पुरुष इस लोक में और परलोक मे कही पर भी कष्ट नहीं पाते है, क्योकि वे जितेन्द्रिय होते है। वे तृष्णा रहित होते है और वे स्व-पर की कल्याणकारी भावना वाले होते है ।