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सूक्ति-सुधा |
अवि वास संयं नारी बम्भयारी विवज्जए ।
( ११ )
टीका--स्त्रिी-सगति इतनी बुरी है कि वृद्धा और कुरूपा एवं
अंतएव सौ वर्ष
अपाग स्त्री से भी ब्रह्मचर्य की हानि हो सकती है। जितनी आयु वाली स्त्री से भी ब्रह्मचारी दूर ही रहें । ( १२ ) थी कहं तु विवज्जए । उ०, १६, २
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३०, ८, ५६,
टीका —— स्त्री - कथा,, स्त्री के अगोंपाग की चर्चा, स्त्री के शृगार की वार्ता आदि स्त्री-जीवन वर्णन की वांते 'ब्रह्मचारी छोड़ दे ब्रह्मचर्य के लिये घातक और वर्ज़नीय वाते वह्मचारी न तो कहे और न सुन तयो न उनका चिन्तवन करे ।
' ( १३ )
णो निग्गंथ इत्थीणं पुत्र रथं, पुन्वकीलिये अणुसरेज्ज ॥
{ ८६
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उ०, १६, ग,),छट्ट्टा
टीका - जो निर्ग्रन्थ है, जो ब्रह्मचारी है, जो जीवन - मुक्ति को कामना वाला है, उसको स्त्रियो के साथ पूर्व काल मे भोगे हुए काम-भोगो को, और क्रीडाओ को याद नहीं करना चाहिये ।
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( १४ ),
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- मिस्स भावं पयहे पयासु ।
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सू०, १०, १५
टीका -- सपूर्ण शातिमय जीवन का इच्छुक पुरुष, स्त्रियो के साथ मेल-मिलाप रखना सुया, त्याग दे । क्योकि स्त्री - ससर्ग और पूर्व शाति दोनो पुरस्पर विरोधी बाते है ।
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