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________________ सूक्ति-सुधा [६४ (८) पाणे य नारवाएज्जा, निज्जाइ उग व थलाओ। - उ०, ८, ९ टीका--जो मुमुक्षु आत्मा, आत्म-कल्याण के ख्याल से प्राणियों का वध नहीं करता है, उसके कर्म इस प्रकार छूटकर बह जाते है, जैसे कि ढालू जमीन से पानी बह जाता है। न हिंसए किंचण सव्व लोए। सू०, ५, २४ उ, २ टीका-ज्ञानी पुरुष कही पर भी किसः प्राणी की हिंसा न करे। मन, वचन और काया से हिंसा की प्रवृत्ति नहीं करे। पर-सुख का अपहरण नही करे । आर्थिक शोषण भी हिंसा है, इसे भी ध्यान मे रखना चाहिये। (१०) नय वित्तासए परं। उ०, २, २०, - टीका-कभी किसी को भी त्रास नहीं देना चाहिये । परपीडन के बरावर कोई पाप नहीं है । पर-अधिकार का भी कभी अप. हरण नही करना चाहिये । (११) . दया धम्मस्स खंतिए विपसीएज्ज मेहावी। उ०, ५, ३० - टीका--मेधावी यानी ज्ञान-शील पुरुष, विवेकी पुरुष क्षमा को धारण करता हुआ दुःखी जीवो पर दया करे, अनुकपा करे, करुणा...
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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