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अहिंसा-सूत्र
- (१) दाणाण सेट्ठ अभयप्पयाण ।
सू०, ६, २३ टीका--सभी प्रकार के दानो मे अभय दान ही सर्वोत्तम दान है। जीवो को जीवन-दान देना, उन्हे भय से मुक्त करना, गरण मे आने पर उनकी रक्षा करना, शरणागत की परिपालना करना यही सर्वोत्तम धर्म है।
(२) एयं तु नाणिनो सारं,
जन्न हिंसइ किंचण।
। सू०, १, १०, उ, ४ - टीका-किसी भी प्राणी की हिंसा नही करना, आघात नही पहुँचाना, कष्ट नही देना, यही ज्ञानी के लिए सार भूत वस्तु है । जीवो को सुख पहुंचाने मे ही ज्ञानी के ज्ञान की सार्थकता रही हुई है।
अहिंसा निउणा दिट्ठा ।
द०, ६, ९ टीका-अहिंसा अनेक प्रकार के सुखो की देने वाली देखी जाती है । अहिंसा से स्व और पर सभी को शाति प्राप्त होती है।
(४) . न हणे णो विधायए।
द०, ६, १०