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धर्म-सूत्र
अध्ययन धर्म है, २ शका आदि दोषो से रहित होकर पूर्ण दत्तचित्त हो अध्ययन करना सुध्यान-धर्म है । और ३ किसी भी प्रकार की फल की इच्छा किये विना ही अनासक्त विशुद्ध निर्जरा के भाव से तपस्या करना और सहिष्णुता रखना तप-धर्म है।
चत्तारि धम्म दारा,
खंति, मोती, अज्जवे, महवे ।
ठाणा०, ४था, ठा, उ, ४, ३८ टीका--धर्म के चार द्वार कहे गये है- १ क्षमा, २ विनय, ३ सरलता, और ४ मृदुता ।
( ३७ ) पंच ठाणाई समणाण जाव यमणुन्नायाई भवंति, सच्च, संजमे, तव, चियाए वंभचेर वासे ।
ठाणा०, ठा० ५, उ०, १, ११ टीका-भगवान ने साधुओ के जीवन को विकसित करने के लिए ५ स्थान वतलाए है-१ सत्य, २ सयम, ३ तप, ४ त्याग (अनासक्ति और अमूर्छा) और ५ ब्रह्मचर्य ।