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________________ जैनागम स्तोक संग्रह सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान, ११ उपशान्त मोहनीय गुणस्थान, १२ क्षीण मोहनीय, गुरणस्थान, १३ सयोगी केवली गुणस्थान, १४ अयोगी केवली गुणस्थान । बारहवे बोले पाँच इन्द्रिय के २३ विषय : १ श्रोत्रेन्द्रिय के तीन विषय-१ जीव शब्द, २ अजीव शब्द ३ मिश्र शब्द। २ चक्ष इन्द्रिय के पॉच विषय-१ कृष्ण वर्ण, २ नील वर्ण, ३ रक्त वर्ण ४ पीत(पीला)वर्ण, ५ श्वेत (सफेद) वर्ण । ३ घ्राणेन्द्रिय के दो विषय-१ सुरभिगन्ध, २ दुरभिगन्ध । ४ रसनेन्द्रिय के पाँच विषय-१ तीक्ष्ण (तीखा) २ कटुक (कडवा) ३ काषाय (कषायला), ४ क्षार (खट्टा), ५ मधुर (मिष्ट-मीठा)। ५ स्पर्शनेन्द्रिय के आठ विषय-१ कर्कश, २ मृदु, ३ गुरु, ४ लघु, ५ शीत, ६ ऊष्ण, ७ स्निग्ध (चिकना), ८ रूक्ष (लुखा)। इस प्रकार उपर्युक्त २३ विषय है। तेरहवे बोले मिथ्यात्व3 दश: १जीव को अजीव समझे तो मिथ्यात्व, २ अजीव को जीव समझे तो मिथ्यात्व, ३ धर्म को अधर्म समझे तो मिथ्यात्व, ४ अधर्म को धर्म समझे तो मिथ्यात्व, ५ साधु को असाधु समझे तो मिथ्यात्व, ६ असाधु को साधु समझे तो मिथ्यात्व, ७ सुमार्ग (शुद्ध भार्ग) को कुमार्ग समझ १२ जिस इन्द्रिय से जो २ वस्तु ग्रहण होती है, वही उस इन्द्रिय का विषय है। ज से कान का विषय शब्द । १३ जीवादि नव तत्वो की सशय युक्त वा विपरीत मान्यता होना तथा अनध्यवसाव-निर्णय बुद्धि का न होना मिथ्यात्व है ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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