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________________ २५ बोल ७३ तो मिथ्यात्व ८ कुमार्ग को सुमार्ग समझे तो मिथ्यात्व & सर्व दुख से 1 मुक्त को अमुक्त समझे तो मिथ्यात्व और १० सर्व दु.ख से अमुक्त को मुक्त समझे तो मिथ्यात्व | चौदहवे बोले नव तत्त्व के ११५ बोल : नव तत्त्व के नाम . १ जीव तत्व २ अजीव तत्त्व ३ पुण्यतत्त्व ४ पाप तत्व ५ आश्रव तत्व ६ सवर तत्व ७ निर्जरा तत्व बन्ध ५ त्व & मोक्ष तत्त्व | तत्त्व के लक्षण तथा भेद --- प्रथम नवतत्व के अन्दर विस्तार : पूर्वक लिखा गया है अत यहां केवल संक्ष ेप में ही लिखा जाता है । 3 土 ܕ Tr 1 १ जीव तत्व के १४, २ अजीव तत्व के १४, ३ पुन्य के ६, ४ पाप के १८, ५ आश्रव के २०, ६ सवर के २०, ७ निर्जरा के १२ बन्ध के ४, और मोक्ष के चार इस प्रकार नव तत्व के सर्व ११५ बोल हुए । पन्द्रहवे बोले आत्मा' आठ : १ द्रव्य आत्मा २ कषाय आत्मा ३ योग आत्मा ४ उपयोग आत्मा ५ ज्ञान आत्मा ६ दर्शन आत्मा ७ चारित्र आत्मा ८ वीर्य आत्मा । सोलहवे बोले दण्डक २४ :-- ७ नरक के नारको का एक दण्डक १, दश भवनपति देव का दश दण्डक, ११ पृथ्वीकाय का एक, १२, अपकाय का एक, १३, तेजस् १ अपनापन ही आत्मा है । जीव की शक्ति किसी भी रूप मे होना ही आत्मा है । २ जिस स्थान पर तथा जिस रूप मे रह कर आत्मा कर्मों से दण्डाती है, वह दन्क है । भेद अन्तर है, परन्तु समावेश चोवीस मे है ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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