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________________ २५ बोल १२ वैक्रिय मिश्र शरीर काय योग, १३ आहारक शरीर काय योग, १४ आहारक मिश्र शरीर काय योग, १५ कार्मण काय योग। ___चार मन के, चार वचन के व सात काय के ये पन्द्रह योग हुए । नववे बोले उपयोग बारह :-- पाँच ज्ञान-१ मतिज्ञान, २ श्रु तज्ञान, ३ अवधिज्ञान, ४ मनः पर्यवज्ञान, ५ केवलज्ञान। तीन अज्ञान-१ मति अज्ञान, २ श्रु त अज्ञान, ३ विभङ्ग अज्ञान । चार दर्शन-१ चक्षु दर्शन, २ अचक्षु दर्शन, ३ अवधि दर्शन, ४ केवल दर्शन एवं बारह उपयोग । दसवे बोले "कर्म आठ : १ ज्ञानावरणीय, २ दर्शनावरणीय ३ वेदनीय, ४ मोहनीय, ५ आयुष्य ६ नाम, ७ गोत्र, ८ अन्तराय, । ग्यारहवे बोले गुणस्थान" चौदह : १ मिथ्यात्व गुणस्थान, २ सास्वादान गुणस्थान, ३ मिश्र गुणस्थान ४ अवतीसमदृष्टि गुणस्थान, ५ देशव्रती श्रावक गुणस्थान, ६ प्रमत्तसंयति गुणस्थान, ७ अप्रमत्त सयति गुणस्थान ८ (नियट्ठी) निवर्तितबादर गुणस्थान, ६ (अनियट्ठी) अनिवर्तित बादर गुणस्थान, १० ___६ जानने पहचानने की शक्ति को उपयोग कहते है । यही जीव का लक्षण है। १० जो जीव को पर भव मे घुमावे, विभाव दशा मे बनावे व अन्य रूपसे दिखावे सो कर्म । ११ सकर्मी जीवो की उन्नति की भिन्न २ अवस्था को गुणस्थान कहते हैं। अवस्था अनन्त है परन्तु गुणस्थान १४ ही है । कक्षा (Class) वत् ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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