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________________ छः काय के बोल ४३ इसके सिवाय पृथ्वी काय के और भी बहुत से भेद है । पृथ्वी काय के एक ककर मे असख्यात जीव भगवत ने सिद्धांत मे फरमाया है । एक पर्याप्ता की नेश्राय से असख्यात अपर्याप्ता है । जो इन जीवो की दया पालेगा वह इस भव मे व पर भव मे निराबाध परम सुख 'पावेगा। पृथ्वी काय का आयुष्य जघन्य अन्तर्म ुहूर्त का उत्कृष्ट नीचे लिखे अनुसार · कोमल मिट्टी का आयुष्य एक हजार वर्ष का । शुद्ध मिट्टी का आयुष्य बारह हजार वर्ष का 1 बालु रेत का आयुष्य चौदह हजार वर्ष का । मनसिल का आयुष्य सोलह हजार वर्ष का कंकरो का आयुष्य अट्ठारह हजार वर्ष का । वज्र हीरा तथा धातु का आयुष्य बावीश हजार वर्ष का । पृथ्वी काय का संस्थान मसुर की दाल के समान है । पृथ्वी काय का " कुल" वारह लाख करोड़ जानना । अपकाय अपकाय के दो भेद - १ सूक्ष्म, २ बादर । सूक्ष्म - सारे लोक मे भरे हुए है, हनने से हनाय नही, मारने से मरे नही, अग्नि में जले नही, जल में डूबे नही, आंखो से दिखे नही व जिसके दो भाग हो सकते नही, उसे सूक्ष्म अपकाय कहते है । बादर - लोक के देश भाग में भरे हुए है, हनने से हनाय, मारने से मरे, अग्नि मे जले, जल में डूबे, आंखो से नजर आवे उसे बादर अपका कहते है । इसके १७ भेद - १ ढार का जल, २ हिम का जल, ३ धू ंवर का जल, ४ मेघरवा का जल, ५ ओस का जल, ६ ओले का जल, ७ बरसात का जल
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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