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________________ जैनागम स्तोक संग्रह ८ ठण्डा जल, ६ गरम जल, १० खारा जल, ११ खट्टा जल, १२ लवण समुद्र का जल, १३ मधुर रस के समान जल, १४ दूध के समान जल, १५ घी के समान जल, १६ ईख (शेलड़ी) के रस जैसा जल, १७ सर्व रसद समान जल । ४४ इसके सिवाय अपकाय के और भी बहुत से भेद है । जल के एक बिन्दु मे भगवान ने असंख्यात जीव फरमाये है। एक पर्याप्त की नेश्राय से असंख्य अपर्याप्त है । इनकी अगर कोई जीव दया पालेगा तो वह इस भव मे व पर भव में निराबाध सुख पावेगा । अपकाय का आयुष्य जघन्य अन्तरमुहूर्त का, उत्कृष्ट सात हजार वर्ष का । जल का सस्थान जल के परपोटे के समान । "कुल'' सात लाख करोड़ जानना । तेजस् काय तेजस् काय के दो भेद - १ सूक्ष्म, २ बादर | सूक्ष्म - सर्व लोक मे भरे हुए है । हनने से हनाय नही, मारने से मरे नही। अग्नि में जले नही, जल में डूबे नही, आँखो से दिखे नही, व जिसके दो भाग होवे नही, उसे सूक्ष्म तेजस् काय कहते है । बादर—तेजस् काय अढाई द्वीप मे भरे हुए है । हनने से हनाय, मारने ने मरे, अग्नि में जले, जल में डूबे, आँखो से दिखे व जिसके दो भाग होवे, उसे बादर तेजस् काय कहते है । बादर अग्नि काय के १४ भेद १ अङ्गारे की अग्नि २ भोभर ( ऊष्णराख) की अग्नि, ३ टूटती ज्वाला की अग्नि, ४ अखण्ड ज्वाला की अग्नि, ५निम्वाडे (कुम्भकार का अलाव भट्ठी) की अग्नि ६ चकमक की अग्नि, ७ बिजली की अग्नि, तारा की अग्नि, εअरणी (काष्ट) की अग्नि, १० वांस 1
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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