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________________ ४९० जैनागम स्तोक संग्रह 'वर्धमान (ज ० उ० अ० मु० की स्थिति) और अवस्थित (ज० १ समय उ० देश उणा क्रोड़ पूर्व की स्थिति)। २१ बन्ध द्वार-तीन संयति ७-८ कर्म बांधे, सूक्ष्म० ६ कर्म बांधे ( मोह, आयु छोड कर ), यथा० बांधे तो शाता वेदनी अथवा अबन्ध ( नही वांधे )। ___२२ वेदे द्वार-चार संयति ८ कर्म वेदे, यथा० ७ कर्म ( मोह सिवाय ) यथा ४ कर्म ( अघातिक ) वेदे। २३ उदीरणा द्वार-सामा० छेदो० परि० ७-८-६ कर्म उदेरे ( उदीरणा करे ), सूक्ष्म ५-६ कर्म उदेरे ६ होवे तो ( आयु, मोह सिवाय ), ५ होवे तो ( आयु, मोह, वेदनी सिवाय ), यथा० ५ कर्म तथा २ कर्म ( नाम, गोत्र ) उदेरे तथा उदो० नही करे। २४ उपसम्पज्झाणं द्वार-सामा० वाले सामा० संयम छोडे तो ४ स्थान पर ( छेदो० सूक्ष्म० सयम तथा असंयम में ) जावे, छेदो० वाले छोडे तो ५ स्थान पर ( सामा०, परि०, सूक्ष्म , संयम तथा असंयम में जावे, परि० वाले छोड़े तो २ स्थान पर ) छेदो०, असंयम में जावे, सूक्ष्म वाले छोड़े तो ४ स्थान पर ( सामा०, छेदो. यथा०, असंयम में) जावे, यथा० वाले छोडे तो ३ स्थान पर ( सूक्ष्म०, असंयम तथा मोक्ष में ) जावे । २५ सज्ञा द्वार-३ चारित्र में ४ सज्ञावाला तथा संज्ञा रहित, शेष में संज्ञा नही। २६ आहार द्वार-४ संयम में आहारक और यथा० आहारक व अनाहारक दोनों होवे। २७ भव द्वार-३ संयति ज० १ भव करे उ० १५ भव ( ८ ममुस्य का, ७ देवता का एव १५ भव ) करके मोक्ष जावे । सूक्ष्म ज० १ भव उ० ३ भव करे यथा० ज० १ उ० ३ भव करके तथा उसी भव मे मोक्ष जावे।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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