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________________ नियठा । ४६१ पुलाक वकुश, पड़िसेवण से अनतगुणा हीन । कषाय कुशील छठाणवलिया । निम्रन्थ स्नातक से अनत गुणा हीन, वकुश पुलाक से अनंत गुणा वृद्धि । वकुश वकुश से छठाणवलिया, वकुशपडिसेवण, कषाय कुशील से छठाणवलिया। निर्ग्रन्थ स्नातक से अनत गुणा हीन । पडिसेवण, वकुश समान समझना। कषाय कुशील चार नियंठा ( पुलाक, वकुश पडि०, कपाय कुशील ) से छठारगवलिया और निर्ग्रन्थ स्नातक से अनत गुणा हीन । निग्रन्थ प्रथम ४ नियठा से अनत गुणा अधिक । निर्ग्रन्थ स्नातक को निम्रन्थ समान ( ऊपरवत् ) समझना। अल्पबहुत्व-पुलाक और कषाय कुशील का ज० चारित्र पर्याय परस्पर तुल्य० उनसे पुलाक का उ० चा पर्याय अनत गुणा, उनसे वकुश और पडि० का ज० चा प. परस्पर तुल्य और अनत गुणा, उनसे वकुश का उ चा० पर्याय अनंत गुणा उनसे निग्रन्थ और स्नातक का ज उ चा पर्याय परस्पर तुल्य और अनत गुणा। १६ योग द्वार · ५ नियठा सयोगी और स्नातक सयोगी तथा अयोगो। १७ उपयोग द्वार . ६ नियठाओ मे साकार-निराकार दोनो प्रकार का उपयोग। १८ कपाय द्वार : प्रथम ३ नियठा मे सकषायी ( सज्वलन का चोक ) कषाय कुशील मे सज्वलन ४-३-२-१ निग्रंथ अकपायी (उपशम तथा क्षीण ) और स्नातक अकषायी ( क्षीण )। १६ लेश्या द्वार पुलाक, वकुश, पडिसेवण मे ३ शुभ लेश्या, कषाय कुशील मे ६ लेश्या, निग्रंथ मे शुक्ल लेश्या, स्नातक मे शुक्ल लेश्या अथवा अलेशी।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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