SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 498
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८० नाम गति जघन्य सुधर्म देव ० सुधर्मं देव० जघन्य उत्कृष्ट प्रत्येक पल्य. १८ सा. प्रत्येक पल्य. २२ सा. प्रत्येक पल्य. २२ सा. ३३ सा. ४ कषाय कुशील सुधर्म देव० अनुत्तर विमान प्रत्येक पल्य. ५ निरृन्थ अनुत्तर वि० सर्वार्थसिद्ध ३१ सागर ३३ सा. ६ उपशान्त अनुत्तर वि० ३३ सागर ३३ सा. ७ स्नातक अनुत्तर वि० उत्कृष्ट १ पुलाक सहस्रार दे० २ वकुश ३ पडिसेवरण सुधर्म देव अच्युत देव० अच्युत देव० जैनागम स्तोक संग्रह स्थिति मोक्ष मोक्ष देवताओ मे ५ पदविये है:- १ इन्द्र, २ लोकपाल ३ त्राय - स्त्रिशक, ४ सामानिक ५ अहमिन्द्र । पुलाक वकुश पड़िसेवण प्रथम ४ पदवी मे से १ पदवी पावे । कषाय कुशोल ५ पदवी में से पावे । निर्ग्रथ अहमिन्द्र होवे, स्नातक आराधक अहमिन्द्र होवे तथा मोक्ष जावे, विराधक ज० विरा० होवे तो ४ पदवी में से १ पदवी पावे । उ० वि० २४ दण्डक में भ्रमण करे । १४ संयम द्वार · संख्याता स्थान असंख्याता है । चार नियंठा मे असं संयम स्थान और निग्रंथ, स्नातक मे संयम स्थान एक ही होवे । सब से कम मि स्ना के सं स्था० । उनसे पुलाक के सं. स्था. अस. गुरणा० उनसे वकुश के स. स्था. अस. गुणा. उनसे पड़िसेवण सं. स्था• अस. गुरणा, उनसे कषाय कुशील का स. स्था. अस. गुणा । १५ निकासे ( सयम का पर्याय ) द्वार : सवो का चारित्र पर्याय अनन्ता - अनन्ता, पुलाक से पुलाक चारित्र पर्याय परस्पर छाणवडिया । यथा : सं० ३ अनंत भाग हानि, २ अस० भाग हानि, ३ सं० भाग हानि, ४ ० भाग हानि, ५ अस० भाग हानि, ६ अनन्त भाग हानि । १ अनत भाग वृद्धि २ अस० भाग वृद्धि ३ संख्यात भाग वृद्धि ४ संख्यात भाग वृद्धि ५ असं ० ६ अनंत भाग सख्यात वृद्धि
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy