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________________ खण्डा जोयणा ४३१ मे १६ हजार देश है। इसी प्रकार १६ हजार देश उत्तर भरत मे है । इस भरत क्षेत्र मे काल चक्र का प्रभाव है ( ६ आरावत् )। ऐरावत् क्षेत्र :-मेरु के उत्तर मे शिखरी पर्वत से आगे भरतवत् है। महाविदेह क्षेत्र:-निपिध और नीलवन्त पर्वत के मध्य में है। पलङ्ग के सठाणवत् ३२ विजय है। मध्य मे १० हजार योजन का विस्तार वाला मेरु है। पूर्व पश्चिम दोनो तरफ २२-२२ हजार योजन भद्रशाल वन है । दोनो तरफ १६-१६ विजय है। मेरु के उत्तर और दक्षिण मे २५०-२५० योजन का भद्रशाल वन है। दक्षिण मे निषिध तक देव कुरु और उत्तर मे नीलवत तक उत्तर कुरु है। ये दोनो दो-दो गजदन्त के कारण अर्धचन्द्राकार है। इस क्षत्र मे युगल मनुष्य ३ गाउ की अवगाहना उछेध आगल के और ३ पल्य के आयुष्य वाले रहते है । देव कुरु मे कुड शाल्मली वृक्ष, चित्र विचित्र पर्वत, १०० का चन गिरि पर्वत और ५ द्रह है । इसी प्रकार उत्तर कुरु मे भी है, परन्तु ये जम्बूसुदर्शन वक्ष है। निषिध और महाहिमवन्त पर्वत के मध्य मे हरिवास क्षेत्र है तथा नीलवन्त और रूपी पर्वत के बीच मे रम्यक्वास क्षेत्र है। इन दो क्षेत्रो मे २ गाउ की अवगाहना और २ पल्य की स्थितिवाले युगल मनुष्य रहते है। ___ महाहैमवन्त और चूल हेमवन्त पर्वत के बीच मे हेमवाय क्षेत्र और रूपी तथा शिखरी पर्वत के मध्य मे हिरणवाय क्षेत्र है। इन दोनो क्षेत्रो मे १ गाउ की अवगाहना वाले और १ पल्य का आयुष्य वाले युगल मनुष्य रहते है। क्षेत्र द० उ० चौडाई बाह जीवा धनष् पीठ यो० कला यो० कला यो० कला यो० कला दक्षिण भरत २३८३ ० ९७४८-१२ १७६६-१ उत्तर " १८६२-७|| १४४७१-६ १४५२८-११
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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