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________________ ४३२ हेमवाय क्षेत्र २१०५-५ ६७५०-३ ८४२१-१ १३३६१-६ हरिवास महाविदेह, ३३६८४-४ ३३७६७-७ ११८४२-२ o देव कुरु उत्तर कुरु, ११-४२-२ ० " ८४२१-१ २१०५-५ २३८-३ २३८-३ ܙܙ 11 6 " रम्यक्वास,, हिरण्यवास,, द. ऐरावर्त,, उत्तर ” " जैनागम स्तोक संग्रह ३७६७४-१६ ३८७४०-१० ७३९०१-१७८४०१६-४ १००००० १८११३-१६ ५३००० ६०४१८-१२ ५३००० ६०४१८-१२ १३३६१-१६ ७३९०१-१७ ८४०१६-४ ६७५५-३ ३७६७४-१६ ३८७४०-१० १८६२-७॥ १४४७१-६ १४५२८-११ ७४८-१२ ९७६६-१ ४ पव्वय द्वार ( पर्वत ) : - २६९ पर्वत शाश्वत है | देव कुरु में ५द्रह है, जिसके दोनों तट पर दस-दसकञ्चन गिरि सर्व सुवर्णमय है, दस तट पर १०० पर्वत है । इसी प्रकार १०० कञ्चन गिरि उत्तर कुरु में है तथा दीर्घ वैताढ्य १६ वक्षार प०, ६ वर्षधर प०, ४ गजदन्ता प०, ४ वृतल वैताढ्य, ४ चित विचितादि और १ मेरु पर्वत एवं २३९ है । - ३४ दीर्घं वैताढ्य – ३२ - विजय विदेह, १ भरत, १ ऐरावत के मध्य भाग मे है | १६ वक्षार - १६-१६ विजय में सीता, सीतोदा नदी से ८-८ विजय के ४ भाग हो गये है । इसके ७ अन्तर है, जिनमे ४ वक्षार पर्वत एवं ४ विभागो में १६ वक्षार है । इनके नाम - चित्र विचित्र दीलन, एकशैल, त्रिकुट, वैश्रमरण, अञ्जन, भयाज्ञ्जन अङ्कावाई, पवमावाई, आशीविष, सुहावह, चन्द्र, सूर्य, नाग, देव । ६ वर्षधर - ७ मनुष्य क्षेत्रों के मध्य में ६ वर्षधर ( चूल हेमवन्त, महा मवन्त, निषिध, नीलवन्त, रूपी और शिखरी ) पर्वत है | ४ गजदन्ता पर्वत - देव कुरु, उत्तर कुरु और विजय के बीच में आये हुए है । नाम - गन्धमर्दन, मालवन्त, विद्युत्प्रभा और सुमानस । ४ वृतल वैताढ्य - हेमवाय, हिरणवाय, हरिवास, रम्यक्वास के
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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