SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 448
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनागम स्तोक संग्रह जगति के ऊपर मध्य में पद्मवर वेदिका है, जा ॥ योजन ऊँची, ५०० धनुष्य चौडी है । दोनो तरफ नीले पन्नो के स्तम्भ है जिन पर सुन्दर पुतलिये और मोती की मालाएँ है । मध्य भाग के अन्दर पद्मवर वेदिका के दो भाग किये हुए है - (१) अन्दर के विभाग मे एक जाति के वृक्षों का वनखन्ड है, जिसमे ५ वर्ण का रत्नमय तृण है । वायु के सञ्चार से जिसमें ६ राग और ३६ रागनियाँ निकलती है । इसमें अन्य बावड़िये और पर्वत है, अनेक आसन है, जहाँ देवो - देवता क्रीड़ा करते है । (२) बाहर के विभाग मे तृण नही है । शेप रचना अन्दर के विभाग समान है । ४३० मेरु पर्वत से चार ही दिशा मे ४५-४५ हजार योजन पर चार दरवाजे है । पूर्व में विजय, दक्षिण में विजयवत, पश्चिम मे जयन्त और उत्तर में अपराजित नामक है । प्रत्येक दरवाजा ८ योजन ऊँचा, ४ योजन चौड़ा है । दरवाजे के ऊपर नव भूमि और सफेद घुमट (गुम्बज), छत्र, चामर, ध्वजा तथा ८-८ मागलिक हैं । दरवाजों के दोनो तरफ दो-दो चौतरे है, जो प्रासाद, तोरण, चन्दन, कलश, झारी, धूप कड़छा, और मनोहर पुतलियों से सुशोभित है । क्षेत्र का विस्तार - भरत क्षेत्र : - मेरु के दक्षिण में अर्ध चन्द्राकारवत् है । मध्य में वैताढ्य पर्वत आने से भरत के दो भाग हो गये है- १ उत्तर भरत, २ दक्षिण भरत । भरत की मर्यादा (सीमा) करने वाला चूल हेमवन्त पर्वत पर पद्म द्रह है, जिसके अन्दर से गङ्गा और सिन्धु नदी निकल कर तमस् गुफा और खण्ड प्रभा गुफा के नीचे वैताढ्य पर्वत को भेद कर लवण समुद्र में मिलती है । इनसे भरत क्षेत्र के ६ खन्ड होते है । दक्षिण भरत २३८ योजन कला का है, जिसमें ३ खण्ड है । मध्य खण्ड मे १४ हजार देश है । मध्य भाग में कोशल देश, वनिता ( अयोध्या ) नगरी है, जो १२ योजन लम्वी, εयोजन चौड़ी है । पूर्व मे १ हजार और पश्चिम में ३ हजार देश है । कुल दक्षिण भरत
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy