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________________ ससकित के ११ द्वार ४२७ अन्तर पडे तो ज० अं० उ० अनन्त काल यावत् देश न्यून [उणा] अर्ध पुद्गल परावर्तन । निरन्तर द्वार.-क्षायक समकित निरन्तर आठ समय तक आवे । शेष ३ समकित आवलिका के अस० में भाग जितने समय निरन्तर आवे। १० आगरेश द्वार:-क्षायक समकित एक बार ही आवे । उपशम समकित एक भव मे ज० १ बार उ० २ बार आवे और अनेक भव आश्री ज० २ वार आवे । शेष २ समकित एक भव आश्री ज० १ बार उ० असख्य बार और अनेक भव आश्री ज० २ बार, उत्कृष्ट असख्य बार आवे। ११ क्षेत्र स्पर्शना-द्वार-क्षायक समकित समस्त लोक स्पर्श (केवली समु० आश्री) शेष ३ समकित देश उण सात राजू लोक स्पर्श । १२ अल्पवहुत्व द्वार-सब से कम उपशम समकित वाला, उनसे वेदक समकित वाला असं० गुणा, उनसे क्षायोपशम समकित वाला असख्यात गुणा, उनसे क्षायक समकित वाला अनन्त गुणा (सिद्धापेक्षा)। खण्डा जोयगा ( सूत्र श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति) १खण्डा २जोयण ३वासा ४पव्वय ५कूडा इतित्थ ७सेढीओ पविजय द्रह १०सलिलाओ, पिडए होई सगहणी ।। १॥ १ लाख योजन लम्बे-चौडे जम्बू द्वीप के अन्दर ( जिसमे हम रहते है ) १ खण्ड, २ योजन, ३ बास, ४ पर्वत, ५ कूट ( पर्वत के ऊपर ) ६ उतीर्थ, । श्रेणी, ८ विजय, ६ द्रह, १० नदिए आदि कितनी है ? इसका वर्णन :
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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