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________________ समकित का ११ द्वार १ नाम २ लक्षण ३ आवन ( आगति ) ४ पावन ५ परिणाम ६ उच्छेद ७ स्थिति ८ अन्तर ६ निरन्तर १० आगरेश ११ क्षेत्र स्पर्शना और अल्पबहुत्व। १ नाम द्वार-समकित के ४ प्रकार : क्षायक, उपशम, क्षयोपशम और वेदक समकित २ लक्षण द्वार-७ प्रकृति (अनंतानुबन्धी क्रोध । मान, माया, लोभ और ३ दर्शन मोहनीय) का मूल से क्षय करने से क्षायक समकित व ६ प्रकृति उपशमावे और समकित मोहनीय वेदे तो वेदक समकित होता है। अनंतानु० चोक का क्षय करे और तीन दर्शन मोह को उपशमावे उसे क्षयोपशम समकित कहते है। ३ आवन द्वार-क्षायक समकित केवल मनुष्य भव में आवे । शेष तीन समकित चार गति में आवे । ८ पावन द्वार-चार ही समकित गति में पावे। ५ परिणाम द्वार:-क्षायक समकित अनन्ता (सिद्ध आश्री) शेष तीन समकित वाला असंख्यात जीव । ६ उच्छेद द्वार.-क्षायक समकित का उच्छेद कभी न होवे । शेप तीन की भजना। ७ स्थिति द्वार -क्षायक समकित सादि अनन्त । उपशम समकित ज० उ० अं० मु०, क्षयोप० और वेदक की स्थिति ज० अ० मु० उ० ६६ सागर झाझेरी। ८ अन्तर द्वार:-क्षायक समकित में अन्तर नही पडे । शेप ३ में ४२६
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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