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________________ व्यवहार समकित के ६७ वोल ४०६ ( ३ ) जीव सुख-दुख का कर्ता और भोक्ता है, निश्चय नय से कर्म का कर्ता कर्म है ; परन्तु व्यवहार नय से जीव है । (४) जीव, द्रव्य गुण पर्याय, प्राण और गुण स्थानक सहित है । ( ५ ) भव्य जीवो को मोक्ष होता है । ज्ञान, दर्शन और चारित्र ये मोक्ष के साधन है । . इस थोकडे को मुंहजबानी ( कठस्थ करके सोचो कि इन ६७ बोलो में से ( व्यवहार समकित के ) मेरे अन्दर कितने बोल है। फिर जितने वोल कम हो उन्हे पूरे करने का प्रयत्न करे तथा परुषार्थ द्वारा उन्हें प्राप्त करे। काय-स्थिति समजाण (स्पष्टी करण) •-स्थिति दो प्रकार की । १ भव स्थिति, २ काय स्थिति । एक भव मे जितने समय तक रहे वह भव स्थिति । जैसे-पृथ्वी काय की स्थिति जघन्य अन्तमुहर्त उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष को। काय-स्थिति :--पृथ्वी काय आदि एक ही काय के जीव उसी काया मे बारम्बार जन्म-मरण करते रहे और अन्य काय, अप, तेउ, वायु आदि मे नही उपजे वहां तक की स्थिति, वह कायस्थिति । पुढवी काल-द्रव्य से अस० उत्स० अवस० काल, क्षेत्र से असख्यात काल, भाव से अगुल के अस० भाग के आकाश प्रदेश जितने लोक । असख्यात काल-द्रव्य, क्षेत्र, काल से ऊपर वत् भाव से आवलिका के असख्यातवे भाग के समय जितने लोक । अर्ध पुद्गल परावर्तन काल-द्रव्य से अतन्त उत्स० अवस० क्षेत्र
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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