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जैनागम स्तोक संग्रह
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से अनन्ता लोक, काल से अनन्त काल और भाव से अर्ध पुद्गल
परावर्त्तन ।
क्षेत्र से अनन्त
वनस्पति काल - द्रव्य से अनन्त उत्स० अवस०, क, काल से अनन्त काल और भाव से असं० पुद्गल परावर्तन | अ० सा० - अनादि सांत, सा० सा० - सादि सांत ।
गाथा - जीव गइन्दिय काए जोए वेद कषाय लेसाय | सम्मत्त गारण दसरण संयम उवओग आहारे ॥ १ ॥ भासगयं परित पज्जत सुहुम सन्नी भवत्थि । चरिमेय एतेसित पदाणं कायठिई होइ णायव्वा ॥२॥ क्रम मार्गणा जघन्य कायस्थिति उत्कृष्ट कार्यस्थिति १ समुच्चय जीवकी २ नारकी की
३ देवता की
४ देवी की
५ तियंच की
६ तिर्यचणी की
७ मनुष्य की मनुष्यनी की सिद्ध भगवान् की
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१४
१५
१६
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१० अपर्याप्ता नारकी की अन्तर्मुहूर्त
११
देवता की
१२
देवी की
१३
17
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33
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शाश्वता
१० हजार वर्ष
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अन्तर्मुहूर्त
13
तिर्यच की
तिर्यचनी की
13
31
शाश्वता
मनुष्य की
मनुष्यनी की
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29
19
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31
23
37
11
५५ पलकी अनन्त काल (वन० ) ३ पल्य और प्र० क्रोड पूर्व
19
शाश्वता
३३ सागरोपम
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शाश्वता
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अन्तर्मुहूर्त
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29
23
99
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