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________________ आठ आत्मा का विचार ४०३ अल्प बहुत इनका अल्पबहुत्व --- सर्व से कम चारित्र आत्मा उनसे ज्ञान आत्मा अनन्त गुणी । उनसे कषाय आत्मा अनन्त गुणी, उनसे योग आत्मा विशेषाधिक, उनसे वीर्य आत्मा विशेषाधिक, उनसे द्रव्य आत्मा तथा उपयोग आत्मा तथा दर्शन आत्मा परस्पर तुल्य और ( वी. आ. से ) विशेषाधिक । यह सामान्य विचार हुवा | अब आठ आत्मा का विशेष विचार कहा जाता है - शिष्य- कृपालु गुरु ! आत्म द्रव्य एक ही शक्ति वाला तथा असख्यात प्रदेशी सत्, चिद् और आनन्दघन कहने मे आता है । इसका निश्चय नय से क्या अभिप्राय है ? व्यवहार नय के मत से किस कारण से आत्मा आठ कही जाती है ? और वे आत्मा किन २ सयोग के साथ मिल कर गतागति करती है ? ये सर्व कृपा करके कहो । गुरु - हे शिष्य ! कारण केवल यही है कि शुद्ध आत्म द्रव्य मे पांच ज्ञान. दो दर्शन तथा पांच चारित्र का समावेश होता है । ये सर्व आत्म शुद्धि के कारण अर्थात् साधन है । इनके अन्दर आत्मवल और आत्म वोर्य लगाने से कर्म मुक्त होती है जब कि सामने पक्ष मे अर्थात् इसके विरुद्ध अशुद्ध आत्म द्रव्य मे पच्चीस कषाय, पन्द्रह योग, तीन अज्ञान और दो दर्शन का समावेश होता है । ये सर्व आत्म अशुद्धि के कारण तथा साधन है । इनमे बल या वीर्य लगाने पर चार गतियो मे, परिभ्रमरण करना पडता है । ऐसा होने पर प्रत्येक आत्मा भिन्न २ सयोगो के साथ मिलती है । जैसा कि इस यन्त्र में बताया गया है.
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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