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________________ ४०४ आठ आत्माओं जीव के चौदह चौदह गुण पन्द्रह योग बारह उपयोग छः लेश्याओ का दूसरा यन्त्र भेद मे से स्थानकमे से मे से मे से मे से १ द्रव्य आत्मा समुच्चय १४ समुच्चय १४ गुण समुच्चय १५ समुच्चय १२ समुच्चय ६ भेद पावे स्थानक पावे योग पावे उपयोग पावे लेश्या ६ २ कषाय आ०में १४ पावे प्रथम १० गुणस्थान १५ पावे केवल ज्ञान व केवल ६ लेश्या दर्शनछोड,शेप १०पावे ३ योग आ०मे १४ पावे पहेले से तेरह गुण १५ पावे १२ पावे. ६ लेश्या स्थानक तक पावे ४ उप०आत्मे १४ पावे १४ गुण स्थानक १५ पावे १२ उपयोग पावे ६ लेश्या ५ ज्ञान आ० मे ३ विकलेन्द्रिय पहला और तीसरा १५ पावे तीन अज्ञान छोड नव ६ लेश्या असज्ञी अपर्याप्ता और छोड कर शेष १२ उपयोग पावे संज्ञी के दो एवं ६ गुण० पावे ६ दर्शन आ० मे १४ पावे १४ पावे १५ पावे १२ उपयोग पावे ६ लेश्या ।' चारित्र आ०मे १ सज्ञी की पर्याप्त पावे प्रथम पाच छोड़ १५ पावे ३ अज्ञान छोड शेप ६ लेश्या शेष नव पावे नव उपयोग ८ वीर्य आ०मे १४ पावे १४ पावे १५ पावे १२ उपयोग पावे ६ लेश्या जैनागम स्तोक सग्रह
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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