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________________ ३६६ जैनागम स्तोक संग्रह चांदी का हार आदि इनसे भी अनंत गुणा इस लेश्या का वर्ण श्वेत होता है। ३ रस द्वार :-कड़वा तुम्बा, नीम्ब का रस, रोहिणी नामक वनस्पति का रस आदि इनसे भी अनंत गुणा अधिक कड़वा रस कृष्ण लेश्या का होता है । नील लेश्या का रस-सू ठ के रस के समान, पीपला मूल आदि के रस से भी अनंत गुणा कड़वा रस नील लेश्या का होता है। कापोत लेश्या का रस-कच्ची केरी, कच्चा कोठा ( कबीट ) आदि के रस से भी अनंत गुणा खट्टा होता है। तेजो लेश्या का रस-पक्के आम, व पक्के कोठे के रस से अनत गुणा अधिक कुछ खट्टा व कुछ मीठा होता है । पद्म लेश्या का रस-शराव, सिरका व शहद आदि से भी अनत गुणा अधिक मधुर होता है। __शुल्क लेश्या का रस-खजूर, दाख ( द्राक्ष ) दूध व शक्कर आदि से भी अनत गुणा अधिक मीठा होता है । ४ गंध द्वार :-गाय, कुत्ता, सर्प आदि के मड़े से भी अनंत गुणो अधिक अप्रशस्त गन्ध प्रथम तोन लेश्या की होती है । कपूर, केवड़ा, प्रमुख घोटने के समय जैसी सुगन्ध निकलती है उस से भी अनत गुणी अधिक प्रशस्त सुगन्ध पिछली लेश्याओं की होती है। ५ स्पर्श द्वार :-करवत की धार, गाय की जीभ, मुझ (ज) का तथा बांस का पान आदि से भी अनंत गुणा तीक्ष्ण अप्रशस्त लेश्या का स्पर्श होता है । वुर नामक वनस्पति, मक्खन सरसव के फूल व मखमल से भी अनंत गुणा अधिक कोमल प्रशस्त लेश्याओ का स्पर्श होता है। ६ परिणाम द्वार :- लेश्या तीन प्रकारे प्रणमे-जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट तथा नव प्रकारे परिणमे ऊपर के तीन प्रकार के पुन
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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