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________________ छ लेश्या ३९७ एक एक के तीन भेद होते है। जैसे जघन्य का ज०, जघन्य का मध्यम और ज० का उत्कृष्ट एव हरेक के तीन-तीन करते नव भेद हुए। ऐसे ही नव के सत्तावीस, सत्तावीस के एकासी और एकासी के दो सौ तेतालीस भेद होते है । इतने भेदो से लेश्या परिणमती है। ७ लक्षण द्वार -कृष्ण लेश्या के लक्षण-पॉच आश्रव का सेवन करनेवाला, अगुप्ति वत, छकाय जीव का हिसक, आरम्भ का तीन परिणामी और द्वेषी, पाप करने में साहसिक, निष्ठुर परिणामी, जीव हिसा, सुग्या रहित करने वाला और अजितेन्द्री आदि लक्षण कृष्ण लेश्या के है। ___ नील लेश्या के लक्षण-ईर्ष्यावंत, मृषावत, तप रहित, मायावी, पाप करने मे शर्माये नही, गृद्धी, धूतारा, प्रमादी रस-लोलुपी, माया का गवेषी, आरम्भ का अत्यागी, पाप के अन्दर साहसिक-ये लक्षण नील लेश्या के है। ___ कापोत लेश्या के लक्षण-वक्रभाषी, वक्र कार्य करनेवाला, माया करके प्रसन्न होवे, सरलता रहित, मुंह पर कुछ और पीठ पीछे कुछ, मिथ्या और मृषा भाषी, चोरी मत्सर का करने वाला आदि । तेजो लेश्या के लक्षण-मर्यादावन्त, माया रहित, चपलता रहित, कुतुहल रहित, विनयवत, जितेन्द्रिय, शुभ योगवत, उपध्यान तप सहित, दृढ धर्मी, प्रिय धर्मी, पाप से डरने वाला आदि । पद्म लेश्या के लक्षण-क्रोध, मान, माया, लोभ को जिसने पतले (कम) किये है, प्रशात चित्त, आत्म निग्रही, योग उपध्यान सहित, अल्प भापी, उपशात जितेन्द्रिय । शुक्ल लेश्या के लक्षण-आर्तध्यान, रौद्र ध्यान से सर्वथा रहित, धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान सहित, दश प्रकार की चित्त समाधि सहित, आत्म निग्रही आदि। ८ लेश्या स्थानक द्वार :-असख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी के
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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