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________________ २६२ बडा बासंठिया . १६ सज्ञी द्वार के तीन वोल. १ सज्ञी २ असज्ञी ३ नो संज्ञो नो नो असज्ञी। २० भव्य द्वार के तीन बोल . १ भव्य २ अभव्य ३ नो भव्य नो अभव्य । २१ चरिम द्वार के दो बोलः १ चरम २ अचरम । एव २१ द्वार के बोल पर वासठ बोल उतारे है। बासठ बोल की विगत -जीव के १४ भेद, गुण स्थानक १४,योग १५, उपयोग १२, लेश्या ६ एव सब मिलकर ६१ बोल और एक अल्प बहुत्व का एव ६२ बोल। १. समुच्चय जीव का द्वार :-१ समुच्चय जीव मे-जीव के १४ भेद, गुणस्थानक १४, योग १५, उपयोग १२, लेश्या ६ । २. गति द्वार =१ नरक गति मे-जीव के ३ भेद, सज्ञी का अपर्याप्त और पर्याप्त व असज्ञी पचेन्द्रिय का अपर्याप्त । गुण स्थानक ४ प्रथम 'के, योग ग्यारह-४ मन के, ४ वचन के, १ वैक्रिय, १ वैक्रिय मिश्र, १ कार्मण काय एव ११ उपयोग 8-३ ज्ञान, ३ अज्ञान ३ दर्शन, लेश्या- ३ प्रथम । २ तिर्यञ्च गति मे-जीव के भेद १४, गुणस्थानक ५ प्रथम, योग १३ आहारक के दो छोड कर । उपयोग ६-३ ज्ञान, ३ अज्ञान, ६ दर्शन लेश्या ६। ३ तिर्यञ्चनी मे-जीव के भेद २, सज्ञी का। गुरणस्थानक ५प्रथम, योग १३ आहारक के दो छोड़ कर । उपयोग ६-३ ज्ञान, ३ अज्ञान, ३ दर्शन ; लेश्या ६ । ४ मनुष्य गति मे-जीव के भेद ३, सज्ञी के २ और १ असंज्ञी पचेन्द्रिय का अपर्याप्त एव ३ गुणस्थानक १४, योग १५, उपयोग १२, लेश्या ६ ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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