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________________ २६६ जैनागम स्तोक संग्रह ५ मनुष्यनो में - जीव के भेद २, सज्ञी का । गुण० १४, योग १३ आहारक के दो छोड़ कर । उपयोग १२ लेश्या ६ । ६ देव गति में - जीव के भेद तीन, दो संजी के और १ अ० पंचेन्द्रिय का अपर्याप्त एवं ३, गुरण० ४ प्रथम, योग ११ - ४ मन के ४ वचन के, २ वैक्रिय के और १ कार्मरण काय एवं ११, उपयोग ६- ३ ज्ञान, ३ अज्ञान, ३ दर्शन एवं &, लेश्या ६ । ७ देवाङ्गना में - जीव के भेद २, संज्ञी का, गुणस्थानक ४ प्रथम, योग ११ - ४ मन का, ४ वचन का, २ वैक्रिय का, १ कार्मण काय, उपयोग – ३ ज्ञान, ३ अ०, ३ दर्शन एवं ६, लेश्या ४ प्रथम | ८ सिद्ध गति में - जीव का भेद नहीं, गुण० नही, योग नही । उपयोग २ - केवल ज्ञान और केवल दर्शन, लेश्या नही । नरक गति प्रमुख आठ बोल में रहे हुए जीवों का अल्पवहुत्व - सब से कम मनुष्यनी, उससे मनुष्य असंख्यात गुणा ( संमूहिम के मिलने से ), उससे नेरिये असं० गुणा, उससे तिर्यञ्चनी असं० गुणी, उससे देव असं० गुणा, उससे देवाङ्गना संख्यात गुणी व उससे सिद्ध अनन्त गुरणा व उससे तिर्यञ्च अनन्त गुरणा । ( साधारण वनस्पति के मिलने से । ) ३ इन्द्रिय द्वार : सइन्द्रिय में जीव के भेद १४, गुण० १२ प्रथम, योग १५, उपयोग १० केवल के दो छोड कर । लेश्या ६ । एकेन्द्रिय में— जीव के भेद ४ प्रथम, गुण० १ प्रथम, योग ५ - २ औदारिक का, २ वैक्रिय का १ कार्मण काय । उपयोग ३ – २ अज्ञान का और १ अचक्षु दर्शन, लेश्या ४ प्रथम । वेइन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय- इनमें जीव के भेद दो-दो, अपर्याप्त और पर्याप्त । गुण० २ प्रथम । योग ४ - - २ ओदारिक का, १ कार्मरण काय, १ व्यवहार वचन | उपयोग — वेइन्द्रिय मे पाँच
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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