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________________ पाँच शरीर २५१ २ लब्धप्रत्ययिक - जो मनुष्य तिर्यच को प्रयत्न से प्राप्त होवे । ३ आहारक शरीर - जो चौदह पूर्वधारी महात्माओ को तपश्चर्यादिक योग द्वारा जब लब्धि उत्पन्न होवे तो तीर्थङ्कर देवाधिदेव की ऋद्धि देखने को व मन की शङ्का निवारण करने को, उत्तम पुद्गलो का आहार लेकर, जघन्य पौन हाथ का व उत्कृष्ट एक हाथ का, स्फटिक समान सफेद व कोई न देख सके ऐसा शरीर बनाते है - जिससे इसे आहारक शरीर कहते है । ४ तेजस् शरीर-जो तेज के पुद्गलो से अदृश्य और भुक्त (खाये हुए) आहार को पचावे तथा लब्धिवत तेजोलेश्ला छोड़े उसे तेजस् शरीर कहते है । ५ कार्मण शरीर-कर्म के पुद्गल से उत्पन्न होने वाला व जिसके उदय से जीव पुद्गल ग्रहण करके कर्मादि रूप में परिणमावे तथा आहार को खेचे उसे कार्मण शरीर कहते है । ३ संस्थान द्वार औदारिक शरीर में संस्थान ६ – १ समचतुरस्र संस्थान २ न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान, ३ सादिक संस्थान, ४ वामन सस्थान, ५ कुब्ज संस्थान, ६ हुडक संस्थान | २ वैक्रिय शरीर मे - ( भव प्रत्ययिक मे ) दे व मे समचतुरस्र सस्थान व नेरियो मे हुडक सस्थान (लब्धि प्रत्ययिक मे) मनुष्य मे व तिर्यञ्च मे समचतुरस्र संस्थान अनेक प्रकार का - वायु मे हुडक सस्थान | ३ आहारक शरीर मे - समचतुरस्र सस्थान । ४-५ तेजस् व कार्मण मे ६ संस्थान ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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