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पांच शरीर श्री प्रज्ञापना (पन्नवणा) सूत्र के २१ वें पद में वर्णित पांच शरीर का विवेचन ।
सोलह द्वार १ नाम द्वार २ अर्थ द्वार ३ संस्थान द्वार ४ स्वामी द्वार ५ अवगाहना द्वार ६ पुद्गल चयन द्वार ७ संयोजन द्वार ८ द्रव्यार्थ द्वार ६ प्रदेशार्थक द्वार १० द्रव्यार्थक प्रदेशार्थक द्वार ११ सूक्ष्म द्वार १२ अवगाहना अल्प बहुत्व द्वार १३ प्रयोजन द्वार १४ विषय द्वार १५ स्थिति द्वार १६ अन्तर द्वार ।
१ नाम द्वार १ औदारिक शरीर २ वैक्रिय शरीर ३ आहारक शरीर ४ तेजस् शरीर ५ कार्माण शरीर ।
२ अर्थ द्वार १ उदार अर्थात् सब शरीरों से प्रधान, तीर्थकर, गणधर आदि पुरुषों को मुक्ति पद प्राप्त कराने में सहायीभूत, उदार कहेता सहस्र योजन मान शरीर; इससे इसे औदारिक शरीर कहते है।
२ वैक्रिय-जिसमें रूप परिवर्तन करने की शक्ति तथा एक के अनेक छोटे बडे खेचर भूचर दृश्य अदृश्य आदि विविध रूप विविध क्रिया से बनावे उसे वैक्रिय शरीर कहते है इसके दो भेद ।
१ भवप्रत्ययिक-जो देवता व नेरियो के स्वाभाविक ही होता है।
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