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________________ तेईस पदवी २४६ ४४ सयतासयति मे १० पदवी पावे-स्त्री को छोड़ शेष ६ पचेन्द्रिय रत्न ७ बलदेव ८ श्रावक ६ समकित १० मांडलिक। ४५ समकित दृष्टि में १५ पदवी पावे–२३ में से सात एकेन्द्रिय रत्न और स्त्री छोड़ शेष १५ पदवी। ४६ मिथ्या दृष्टि में १७ पदवी पावे-सात एकेन्द्रिय रत्न, सात पंचेन्द्रिय रत्न, १४, १५ चक्रवर्ती १६ वासुदेव १७ माडलिक । ___४७ मति, श्रुत और अवधि ज्ञान मे १४ पदवी पावे-केवली छोड शेष ८ उत्तम पदवी, स्त्री को छोड़ शेष ६ पचेन्द्रिय रत्न एवं (+६) १४ पदवी। ___ ४८ मन. पर्यायज्ञान मे ३ पदवी पावे-१ तीर्थकर ३ साधु ३ समकित । ४६ केवलज्ञान केवलदर्शन मे ४ पदवी पावे-१ तीर्थकर २ केवली ३ साधु ४ समकित । ५० मति श्रुत अज्ञान मे १७ पदवी पावे-सात एकेन्द्रिय रत्न, सात पचेन्द्रिय रत्न, १४; १५ चक्रवर्ती १६ वासुदेव १७ मांडलिक । ५१ विभङ्ग ज्ञान मे ६ पदवी पावे-स्त्री को छोड शेष ५ पचेन्द्रिय रत्न, ७ चक्रवर्ती ८ वासुदेव ६ माडलिक । ५२ चक्षुदर्शन में १५ पदवी पावे-केवली को छोड शेष ८ उत्तम पदवी और सात पचेन्द्रिय रत्न एवं १५ पदवी। ५३ अचक्षु दर्शन में २२ पदवी पावे-केवली नही । ५४ अवधि दर्शन मे १४ पदवी पावे-केवली को छोड शेष ८ उत्तम पदवी, और स्त्री को छोड शेष ६ पचेन्द्रिय रत्न एवं सर्व १४ पदवी। ५५ नपुसक लिड्न मे ५ पदवी पावे-१ केवली २ साधु ३ श्रावक ४ समकित ५ मांडलिक ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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