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________________ २५२ जैनागम स्तोक संग्रह ४ स्वामी द्वार १ औदारिक शरीर का स्वामी - मनुष्य व तिर्यञ्च । २ वैक्रिय शरीर का स्वामी -चार ही गति के जीव । ३ आहारक शरीर का स्वामी - चौदह पूर्वधारी मुनि । ४-५ तेजस् कार्मण शरीर के स्वामी - सर्व संसारी जीव । ५ अवगाहना द्वार औदारिक शरीर की अवगाहना - जघन्य आंगुल के असंख्यातवे भाग उत्कृष्ट हजार योजन की । - २ वैक्रिय शरीर की अवगाहना – जघन्य आंगुल के असख्यातवे भाग उत्कृष्ट ५०० धनुष्य । उत्तर वैक्रिय करे तो ज० आंगुल के असंख्यातवे भाग उ० लक्ष योजन जाजेरी ( अधिक ) । ३ आहारक शरीर की अवगाहना - जघन्य एक हाथ न्यून उत्कृष्ट एक हाथ की । ४-५ तेजस् कार्मण शरीर की अवगाहना -- जघन्य आंगुल के असं - ख्यातवे भाग उ० चौदह राजू लोक प्रमाण । ६ पुद्गल चयन द्वार ( आहार कितनी दिशाओ का लेवे ) औदारिक, तेजस्, कार्मरण शरीर वाला तीन, चार, पाँच यावत छ: दिशाओ का आहार लेवे । वैक्रिय और आहारक शरीर वाला छः दिशाओं का लेवे । ७ संयोजन द्वार १ औदारिक शरीर मे आहारक वैक्रिय की भजना ( होवे और नही भी होवे ), तेजस् कार्मण की नियमा ( जरूर ) होवे ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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