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________________ तेईस पदवी २४३ अंगुल लम्वा १६ अंगुल चोड़ा और आधा अंगुल जाड़ा होता है और चार अंगुल की मुष्टि होती है । मणि रत्न चार अंगुल लम्बा और दो अंगुल चौडा व तीन कोने वाला होता है । काकण्य रत्न चार अ० लम्बा चार अ० चौड़ा चार अ० ऊँचा होता है । इसके छः तले, आठ कोण, बारह हासे वाला आठ सोनैया जितना वजन मे व सोनार के एरण समान आकार मे होता है । सात पचेन्द्रिय रत्न की अवगाहना : १ सेनापति, २ गाथापति, ३ वार्धिक, ४ पुरोहित । इन चार रत्नो की अवगाहना चक्रवर्ती समान । स्त्रीरत्न चक्रवर्ती से चार अगुल छोटी होती है । गज रत्न चक्रवर्ती से दुगुना होता है । अश्वरत्न पूंछ से मुख तक १०८ अ० लम्बा, खुर से कान तक ८० अ० ऊचा, सोलह अगुल की जङ्घा, वीस अंगुल की भुजा, चार अंगुल का घुटना, चार अ गुल के खुर और ३२ अंगुल का मुख होता है व ६६ अ गुल की परिधि ( घेराव ) है | एव २३ पदवी का नाम तथा चक्रवर्ती के चौदह रत्नो का विवेचन कहा | नरकादिक चार गति मे से निकले हुए जीव २३ पदवियो मे की कौन-कौन सी पदवी पावे । इस पर पन्द्रह बोल । १ पहली नरक से निकले हुए जीव १६ पदवी पावे । सात एकेन्द्रिय रत्न छोड़ कर । २ दूसरी नरक से निकले हुए जीव २३ पदवी मे से १५ पदवी पावे । सात एकेन्द्रिय रत्न और एक चक्रवर्ती एव आठ नही पावे । ३ तीसरी नरक से निकले हुए जीव १३ पदवा पावे । सात एकेन्द्रिय रत्न, चक्रवर्ती, वासुदेव एव दश पदवी नही पावे ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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