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________________ २४२ जैनागम स्तोक संग्रह अन्दर नाव रूप हो जाता है ४ दण्ड रत्न - वैताढ्य पर्वत के दोनो गुफाओ के द्वार खोलता है ५ खङ्ग रत्न - शत्रु को मारता है ६ मणि रत्न - हस्ति रत्न के मस्तक पर रखने से प्रकाश करता है ७ काकण्य (कांगनी) रत्न - गुफाओ में एक २ योजन के अन्तर पर धनुष्य के गोलाकार घिसने से सूर्य समान प्रकाश करता है । सात पचेन्द्रिय रत्न : १ सेनापति रत्न - देशो को विजय करते है २ गाथापति रत्न- - चौवीश प्रकार का धान्य उत्पन्न करते है, ३ वार्धिक ( बढ़ई ) रत्न - ४२ भूमि, महल, सड़क पुल आदि निर्माण करते है ४ पुरोहित रत्न - लगे हुए घावों को ठीक करते है विघ्न को दूर करते, शांति पाठ पढ़ते व कथा सुनाते है ५ स्त्री रत्न विषय के उपभोग में काम आती ६-७ गज रत्न व अश्व रत्न - ये दोनो सवारी मे काम आते है । चौदह रत्नों के उत्पति स्थान : १ चक्र रत्न २ छत्र रत्न ३ दण्ड रत्न ४ खङ्ग रत्न ये चार रत्न चक्रवर्ती की आयुध शाला मे उत्पन्न होते है | १ चर्म रत्न २ मरिण रत्न ३ काकण्य ( कांगनी ) ये तीन रत्न लक्ष्मी के भण्डार में उत्पन्न होते है । १ सेनापति रत्न २ गाथापति रत्न ३ वार्धिक रत्न ४ पुरोहित रत्न चक्रवर्ती के नगर में उत्पन्न होते है ! १ स्त्रीरत्न विद्याधरों की श्र ेणी में उत्पन्न होती है । १ गज रत्न, २ अश्व रत्न ये दोनो रत्न वैताढ्य पर्वत के मूल में उत्पन्न होते है । चौदह रत्नों की अवगाहना १ चक्र रत्न, २ छत्र रत्न ३ दण्ड रत्न ये तीन रत्न की अवगाहना एक धनुष्य प्रमाण, चर्म रत्न की दो हाथ की, खङ्ग रत्न पचास
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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