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पाच ज्ञान का विवेचन
२३५ ३६ पृथक करोडाकरोड योजन । इस प्रकार क्षेत्र विधि ज्ञान से देखे पश्चात् नष्ट हो जावे। उत्कृष्ट लोक प्रमाण क्षेत्र देखने बाद नष्ट होवे जैसे दीप पवन के योग से बुझ जाता है वैसे ही यह प्रतिपाति अवधि ज्ञान नष्ट हो जाता है।
६ अप्रतिपाति ( अपडिवाई ) अवधिज्ञान जो आकर पुन. जावे नही यह सम्पूर्ण चौदह राजूलोक जाने देखे व अलोक मे एक आकाश प्रदेश मात्र क्षेत्र की बात जाने देखे तो भी पडे नही एवं दो प्रदेश तथा तीन प्रदेश यावत् लोक प्रमाण असंख्यात खण्ड जानने की शक्ति होवे उसे अप्रति पाति अवधिज्ञान कहते है । अलोक मे रूपी पदार्थ नही यदि यहा रूपी पदार्थ होवे तो देखे इतनी जानने की शक्ति होती है । ज्ञान तीर्थकर प्रमुख को बचपन से ही होता है । केवल ज्ञान होने बाद यह उपयोगी नही होता है एव ६ भेद अवधिज्ञान के हुए। ___ समुच्चय अवधि ज्ञान के चार भेद होते है .-१ द्रव्य से अवधि ज्ञानी जघन्य अनन्त रूपी पदार्थ जाने देखे, उत्कृष्ट सर्व रूपी द्रव्य जाने देखे । २ क्षेत्र से अवधिज्ञानी जघन्य आंगुल के असख्यातवे भाग क्षेत्र जाने देखे, उत्कृष्ट लोक प्रमाण अस० खण्ड अलोक मे देखे। ३ काल से अवधिज्ञानी जघन्य आवलिका के असख्यातवे भाग की बात जाने देखे उत्कृष्ट अस० उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, अतीत ( गत) अनागत (भविष्य काल की बात जाने देखे । ४ भाव से जघन्य अनन्त भाव को जाने उत्कृष्ट सर्व भाव के अनन्तवे भाग को जाने देख ( वर्णादिक पर्याय को)